सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की

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              एक रोज़ एक मंज़िल में मंझले भाई ने मज़कूर किया की एक फ़रसख़ उस मकान से चश्मा जारी है जैसे सलसबील के और मैदान  में ...

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